यह कौन चित्रकार है ; कभी नहीं सीखी चित्र-विद्या, बिलासपुर की गृहणी ने बनाया राज्यपाल का पोर्ट्रेट, उन्हें भेंट किया, अब चित्र-शाला बनाने की इच्छा…
यह कहानी बिलासपुर शहर के पूर्वी छोर के सीमान्त इलाके लालखदान के ढेका में रहने वाली एक उभरती हुई चित्रकार-गृहणी की है . इनका नाम है- माया . पूरा नाम- माया मौर्य . इससे पहले माया की चित्र-कला की जानकारी किसी को नहीं थी . आश्चर्यजनक रूप से यह बात तब उगागर हुई जब बिलासपुर में छत्तीसगढ़ प्रदेश की राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके एक प्रतिष्ठित न्यूज चैनल “बंसल न्यूज़” के ‘हमर बिलासपुर बढ़त बिलासपुर’ कार्यक्रम में “उच्च शिक्षा- समस्या व समाधान” विषय पर चर्चा करने स्थानीय हॉटल द आनंदा इम्पीरियल पहुंची हुई थीं . माया भी उस कार्यक्रम में मौजूद थी और उनके हाथों में थी अपने हाथ से बनी राज्यपाल अनुसुइया की तस्वीर . राज्यपाल का एक अदद पोर्ट्रेट . सीस पेन्सिल से बनाया गया राज्यपाल का स्केच . राज्यपाल महोदया ने अपनी तस्वीर उनके हाथों में देखकर उन्हें मंच पर बुलाया . माया ने तस्वीर उन्हें भेंट की . अपनी ही तस्वीर देखकर राज्यपाल अभिभूत हो गई . माया ने बताया कि यह तस्वीर उसने खुद बनाई है, अपने हाथों से . राज्यपाल ने माया की कला की खुले दिल से तारीफ की .
राज्यपाल उइके ने माया से खूब बातें की . बांतों-बांतों में उन्होंने इस कला की जानकारी ली और अपनी तस्वीर बनाने के लिए माया को धन्यवाद दिया .
कार्यक्रम के बाद उन्होंने माया से पूछा कि यह कला कहाँ से सीखी ? माया ने बताया कि विवाह से पूर्व माता-पिता को कभी-कभार घर में चित्रकारी करते हुए देखती थी . पिता के स्वर्गवास के बाद उसने मन बनाया कि चित्रों के जरिये मानवीय विषयों को कलात्मक अभिव्यक्ति दी जा सकती है . उन्होंने महसूस किया कि हर व्यक्ति में गहरी अंतर्दृष्टि होती हैं, जरुरत है उसे समझकर उसे रंगों के संयोजन से कैनवास में उकेरने की .
माया कहती हैं- अपने पति उमेश मौर्य से भी उन्हें प्रेरणा मिली . उमेश बरसों से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े हुए हैं . पत्रकार हैं . दृश्य-श्रव्य पत्रकारिता से उनका गहरा नाता है . उसने अपने पति से सलाह ली . उन्होंने सोशल मीडिया से मदद लेने के लिए कहा . बस, फिर क्या था . माया ने यू-ट्यूब का सहारा लिया . पहले उन्होंने चित्रकला का किताबी-ज्ञान लिया . फिर हाथ में ग्रेफाईट की पेन्सिल और ब्रश पकड़ा और उसे कागज और कैनवास में उकेरने का सिलसिला चल पड़ा . देखते ही देखते उनकी यह प्रतिभा निखरकर सामने आने लगी, उनके ही बनाये चित्रों के माध्यम से .
माया कहती हैं- उन्होंने चित्र-विद्या का विधिवत प्रशिक्षण नहीं लिया . संभवतः कोई दैवीय शक्ति उसे इस विधा की तरफ खींच रही थी . घर के काम-काज से उसने थोड़ा-सा समय चुराया, आवश्यकतानुसार पेन्सिल और तूलिका थामी और अपनी कल्पनाओं को चित्रों में ढाल दिया .
माया ने बताया कि राज्यपाल को भेंट की गई यह उनकी तीसरी तस्वीर है . पहली अपने पिता की तस्वीर बाद में अपने परिवार की और अब राज्यपाल महोदय की . उसकी दिली इच्छा है कि अब वह चित्र-विद्या के सभी पहलुओं को अच्छे से आत्मसात करेगी और एक चित्र-शाला की स्थापना कर गांव-शहर के बच्चों को इसका प्रशिक्षण देगी .