कानन-पेंडारी जू में उपचाररत बाघिन की मौत…
बिलासपुर . कानन पेंडारी जू में बुधवार को उपचाररत एक मादा बाघ की मौत हो गई . बाघिन अचानकमार टाईगर रिजर्व के वनपरिक्षेत्र छपरवा से घायल अवस्था में रेस्क्यू कर कानन पेण्डारी जूलॉजिकल गार्डन लाई गई थी . शाम को वन अधिकारियों और चिकित्सकों की उपस्थिति में बाघिन का पोस्टमार्टम कर उसका दाह-संस्कार कर दिया गया है . बाघिन की उम्र करीब 13 वर्ष थी . वन अधिकारियों ने बाघिन के उम्रदराज होने के कारण मल्टीपल आर्गन फेल्युअर से मौत होना बताया है।
कानन जू के अधिकारियों से प्राप्त जानकारी के अनुसार बुधवार की सुबह 8.45 बजे बाघिन के शरीर का तापमान सामान्य से बहुत कम पाया गया . जू के पशुचिकित्सक ने तत्काल उसका उपचार प्रारंभ किया जिससे उसके शरीर के तापमान में वृद्धि अवश्य हुई लेकिन 11.26 बजे मादा बाघ के शरीर में हलचल बंद हो गई . कानन पेण्डारी जू के पशुचिकित्सक ने उसे मृत घोषित कर दिया . बाघिन का शवविच्छेदन संचालक अचानकमार अमरकंटक बायोस्फेयर रिजर्व, कोनी एवं परिक्षेत्राधिकारी, कानन पेण्डारी जू की उपस्थिति में पशु चिकित्सकों की गठित समिति के सदस्य डॉ. आर.एम. त्रिपाठी, डॉ. अनूप चटर्जी, डॉ. रामओत्तलवार, एवं डॉ. अजीत पाण्डेय और डॉ. तृप्ति सोनी द्वारा किया गया . वन अधिकारियों ने बाघिन का विसरा आदि एकत्र कर उसका दाह संस्कार कर दिया . पशु चिकित्सकों ने प्रारंभिक दृष्टि में बाघिन के उम्रदराज होने के कारण मल्टीपल आर्गन फेल्युअर होना उसकी मौत की वजह बताई है .
वन अधिकारियों के अनुसार बाघिन को 8 जून 2021 को अचानकमार टाईगर रिजर्व के वनपरिक्षेत्र छपरवा के सांभरधसान सर्किल से घायल अवस्था में रेस्क्यू कर कानन पेण्डारी जूलॉजिकल गार्डन लाया गया था . उक्त बाघिन का उपचार जंगल सफारी नवा रायपुर के वरिष्ठ पशु चिकित्साधिकारी डॉ. राकेश वर्मा द्वारा प्रारंभ किया गया . मादा बाघ खड़े होने में असमर्थ थी एवं बहुत ही ज्यादा कमजोर थी . उसके बायें कंधे के पास एवं पूंछ के ऊपरी भाग में बड़ा घाव पाया गया था .
बाघिन के उपचार के लिए कार्यालय प्रधान मुख्य वनसंरक्षक (व.प्रा.) नवा रायपुर ने मुख्य वनसंरक्षक (व.प्रा.), बिलासपुर की अध्यक्षता में 07 सदस्यीय समिति का गठन भी किया था . समिति के द्वारा मादा बाघिन की उम्र लगभग 13 वर्ष होना बताया गया . बाघ की औसत आयु 12-14 वर्ष होती है . समिति के निर्देशानुसार बाघिन का उपचार एवं उचित रखरखाव किया जा रहा था .
वन अधिकारियों के अनुसार मादा बाघ के छायाचित्र को भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून, उत्तराखंड के राष्ट्रीय डाटाबेस से मिलान करने पर यह पाया गया कि मादा बाधिन का जन्म 2009 में बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व में हुआ था एवं उसने वर्ष 2013 एवं 2015 में कमशः 2 एवं 3 शावकों को जन्म दिया था .
वन अधिकारियों ने बताया कि बाघिन के उपचार के लिए नानाजी देशमुख वाईल्ड लाईफ हेल्थ एव फोरेंसिक स्कूल, जबलपुर के पूर्व निदेशक एंव वन्यप्राणी विशेषज्ञ डॉ. ए.बी. श्रीवास्तव को सलाह के लिए बुलाया गया था . उन्होंने बताया कि बाघिन के शरीर की हडिडयों के जोड़ों में डीजेनेरेटिव परिवर्तन हो गया है . समिति के सदस्यों ने भी पाया कि बाघिन के पिछले बायें पैर में लंगड़ाहट का कारण उम्रदराज एवं हड्डियों में होने वाले डीजेनेरेटिव बदलाव है जिसके कारण बाघिन को जंगल में छोड़ा जाना संभव नहीं है .
आगे बताया गया कि पिछले 5 नवम्बर को बाघिन को पक्षाघात हुआ था जिससे वह अपने पिछले दोनों पैरो में खड़ी होने से असमर्थ हो गई थी . कामधेनु विश्वविद्यालय, अंजोरा के निदेशक सेंटर फॉर वाइल्ड लाईफ एण्ड फारेंसिक, प्रोफेसर मेडिसीन की सलाह पर बाघिन को आवश्यक दवाईया एव इंफारेड थेरेपी दी जा रही थी . बाघिन के उपचार के लिए कामधेनु विश्वविद्यालय, अंजोरा के निदेशक सेंटर फॉर वाइल्ड लाईफ कामधेनु विश्वविद्यालय, अंजोरा के निदेशक, सेंटर फॉर वाइल्ड लाईफ से ऑनलाइन परामर्श भी लिया गया .
मादा बाघ के स्वास्थ्य को देखते हुए उसे विगत एक माह से फ्लूइड थेरेपी दी जा रही थी . 26-27 फरवरी को बाघिन के आहार में कमी पाई गई . 28 फरवरी को उसे तरल भोज्य पदार्थ भी दिया गया लेकिन उसने कम ही ग्रहण किया . 1 मार्च को मादा बाघ ज्यादा सुस्त दिखाई पड़ रही थी . अंततः 2 मार्च को बाघिन की मौत हो गई .