हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति की मिलीजुली खुशबू है कत्थक नृत्य में…देबाश्री भट्टाचार्य

हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति की मिलीजुली खुशबू है कत्थक नृत्य में…देबाश्री भट्टाचार्य

आधारशिला विद्या मंदिर और अटल बिहारी बाजपेयी विश्वविद्यालय में कथक नृत्य प्रशिक्षण व प्रदर्शन तीन सितंबर को…

युवा कलाकारों को प्रशिक्षण लेने का मिल रहा सुनहरा अवसर…

बिलासपुर । पश्चिम बंगाल के कोलकाता से आई भारतीय कत्थक नृत्यांगना देबाश्री भट्टाचार्य और उनकी शिष्या रीमा भंडारी पिछले सप्ताह से स्पिक मैके, बिलासपुर के लेक्चर-डिमान्स्ट्रेशन सिरीज़ के तहत शहर के विभिन्न स्कूलों में कथक का प्रशिक्षण दे रही हैं। शुक्रवार को बिलासपुर प्रेस क्लब में पहुंचकर उन्होंने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि कथक नृत्य, जिसे प्राचीन काल में नटवरी नृत्य कहा जाता था, नृत्य हिंदू और मुस्लिम संस्कृति से जुड़ी एक शास्त्रीय नृत्य कला है। इस कला में प्रेम है, प्यार है लेकिन हिंसा बिल्कुल नहीं है।
कत्थक के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए नृत्यांगना देबाश्री भट्टाचार्य ने बताया कि यह नृत्य देश-दुनिया के समक्ष 3 अवस्थाओं से गुजरकर पहुंचा है। पहले फेस में यह नृत्य गांव-गांव में प्रचलित था। कथक मूलतः लोक नृत्य है। कथक का अर्थ है- कथा कहना । दूसरे फेस में पंडितों ने, विद्वानों ने कत्थक को मंदिरों से जोड़ा। इसके बाद तीसरे फेस में, मुगल शासन काल के दौरान कत्थक नृत्य में फुट वर्क, चक्करदार परन और लास्य को जोड़कर इसे आकर्षक बनाया गया।


नृत्यांगना देबाश्री भट्टाचार्य ने कहा कि कथक लोगों के अंदर प्रेम और प्यार जगाता है। इस डांस फार्म में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि म्यूजिक और डांस वस्तुतः योग है, साधना है। आज के सामाजिक परिवेश की समस्त भावनाओं को कथक नृत्य के जरिए प्रस्तुत किया जा सकता है ।
नृत्यांगना ने आगे कहा कि अपनी गुरू रानी करना देवी से उन्होंने कथक नृत्य की शिक्षा-दीक्षा ली . वे पिछले 35 वर्षों से सतत नृत्याभ्यास में लीन है . उनका उद्देश्य युवाओं को कथक की दुनिया से परिचित कराना है . उन्होंने सांस्कृतिक संस्था स्पिक मैके का शुक्रिया अदा किया जिसके साथ वे विगत 10 वर्षों से जुड़कर नृत्य साधना और प्रशिक्षण कार्यक्रम कर रही है . उन्होंने छत्तीसगढ़ के युवाओं को बेहद उर्जावान बताया और कहा कि उनमें कथक सीखने की ललक है .

इस मौके पर स्पिक मैके की कोर्डिनेटर रिम्पी निर्णेजक ने कहा कि स्पिक मैके ने युवाओं को एक बेहतर माध्यम दिया है जिससे लोग कथक जैसे शास्त्रीय नृत्य और संगीत का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं।
कोर्डिनेटर सौरिश सिंह ने भी कहा कि स्पिक मैके की बदौलत ही युवाओं को सीखने का मौका मिल रहा है . बिलासपुर के स्कूली बच्चों में कत्थक को लेकर काफी उत्साह का वातावरण है ।

नृत्यांगना देवाश्री की शिष्या व प्रशिक्षक रीमा भंडारी ने कहा कि कथक अत्यंत श्रमसाध्य शास्त्रीय नृत्य है। छत्तीसगढ़ के युवा इसे सीखने-समझने में बेहद रूचि ले रहे हैं . हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत को सम्हालने, संवारने में स्पिक मैके युवाओं के बीच बेहतर कार्य कर रही है।
इसके पहले स्पिक मैके के कन्वीनर डॉ अजय श्रीवास्तव ने बताया कि आधारशिला विद्या मंदिर तथा अटल बिहारी वाजपेयी, विश्वविदयालय में कथक प्रशिक्षण व प्रदर्शन तीन सितंबर को किया जायेगा। जिसमें कत्थक नृत्यांगना देवाश्री भट्टाचार्य और उनकी शिष्या रीमा भंडारी द्वारा प्रशिक्षण और प्रदर्शन किया जाएगा।


स्पिक मैके की कोर्डिनेटर श्रुति प्रभला ने बताया कि विगत वर्षों में विभिन्न शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों को देश के मूर्धन्य कलाकारों द्वारा प्रस्तुति एवं प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
स्पिक मैके लेक्चर डेमोस्ट्रेशन सीरीज के अंतर्गत छत्तीसगढ़ राज्य में अनेकों कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। बिलासपुर में 29 अगस्त से तीन सितंबर तक भारतीय कथक नृत्यांगना देवाश्री भट्टाचार्य और उनकी शिष्या रीमा भंडारी द्वारा स्पीक मैके के तत्वावधान में प्रशिक्षण व प्रदर्शन कार्यक्रम किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के तहत 29 अगस्त को स्वामी आत्मानंद स्कूल, मंगला तथा स्वामी आत्मानंद स्कूल, लाला लाजपत राय नगर में तथा 30 अगस्त को प्रयास रेसिडेंशियल स्कूल में एक सितंबर को होली हार्ट स्कूल तथा द ग्रेट इंडिया स्कूल रायपुर में दो सितंबर को गवर्नमेंट हायर सेकंडरी स्कूल, लिमतरी एवं सेंट जेवियर्स स्कूल, भरनी, बिलासपुर में आयोजन किया गया। शनिवार तीन सितंबर को बिलासपुर के आधारशिला विद्या मंदिर तथा अटल बिहारी वाजपेयी, विश्वविदयालय में कथक प्रशिक्षण व प्रदर्शन कार्यक्रम होगा। श्रुति ने बताया कि कार्यक्रम को सफल बनाने डा. अजय श्रीवास्तव, कन्वीनर, स्पिक मैके, रिम्पी निर्णजक तथा वालेंटियर सारिश सिंह, कोर्डिनेटर, स्पिक मैके छत्तीसगढ़ राज्य चेप्टर श्रुति प्रभला,द्वारा सतत प्रयास किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि स्पिक मैके युवाओं में देश की पारम्परिक और शास्त्रीय कला एवं संस्कृति के प्रसार के लिए एक अभियान है। आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर किरण सेठ द्वारा वर्ष 1977 में इसे प्रारम्भ किया था। कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए किरण सेठ को 2009 में पद्मश्री से नवाजा गया। 2011 में युवा विकास में योगदान के लिए स्पिक मैके को राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
स्पिक मैके को राष्ट्रीय स्तर पर संस्कृति मंत्रालय, युवा मामले एवं खेल मंत्रालय तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा समर्थन प्राप्त है ।

सम्पादक

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