सुखाड़िया स्मृति व्याख्यान…
महात्मा गांधी आध्यात्मिक राजनीति के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण- प्रोफे. वाजपेयी

सुखाड़िया स्मृति व्याख्यान…महात्मा गांधी आध्यात्मिक राजनीति के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण- प्रोफे. वाजपेयी

उदयपुर/बिलासपुर . आज की राजनीतिक परिस्थितियों में आध्यात्मिक राजनीति की आवश्यकता शिद्दत से महसूस की जाती है क्योंकि इसकी कमी हमें जीवन मूल्यों से दूर करती है। महात्मा गांधी आध्यात्मिक राजनीति के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, हमें उनसे सीख लेकर मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों और मूल्यों को मजबूत बनाना चाहिए।
उक्त विचार मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय की ओर से प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली मोहनलाल सुखाड़िया स्मृति व्याख्यान में मुख्य वक्ता के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय बिलासपुर के कुलपति प्रोफे. अरुण दिवाकर नाथ वाजपेयी ने कही। वे सोमवार को विश्वविद्यालय अतिथि गृह सभागार में ‘अध्यात्मिक राजनीति’ विषय पर बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि यथार्थवाद की जड़ता और जकड़ता को तोड़ने की जरूरत है और यह काम आज की मौजूदा राजनीति नहीं कर सकती। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह काम आध्यात्मिक राजनीति ही कर सकती है। आध्यात्मिक राजनीति आज की राजनीति में देखने को नही मिलती क्योंकि वह धर्म और क्षेत्र के आधार पर ही होती देखी जाती है। उन्होंने कहा कि गांधी की राजनीति आध्यात्मिक राजनीति का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। बाल गंगाधर तिलक, विवेकानंद, शंकराचार्य और टैगोर की राजनीति भी आध्यात्मिकता से ओतप्रोत थी तभी उन्होंने आध्यात्मिकता के साथ राष्ट्रप्रेम की अलख भी जगाई।


उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी ने आध्यात्मिक प्रयोगों के साथ राजनीति के जरिये दुनिया की सबसे बड़ी ताकत, ब्रिटिश राजवंश को पछाड़ा जिसका सूर्य कभी अस्त नहीं होता था।
उन्होंने कहा कि आज की राजनीति, धर्म का सहारा लेती है जबकि धर्म और आध्यात्मिकता में बहुत महीन अंतर है जिसे हम मुश्किल से समझ सकते हैं। उन्होंने कहा कि कैंब्रिज विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में किसी प्रोफ़ेसर ने पूछा कि अगर गांधी नहीं होते तो क्या भारत आजाद नहीं होता, क्या भारत उसी स्थिति में होता, उनको जो जवाब दिया गया वह यह था कि भारत को आजादी तो मिलती लेकिन वैसे मिलती जैसे अन्य राष्ट्रों को संपूर्ण रक्तपात और युद्ध के बाद मिली। आज जो भारत में शांति, समृद्धि और सामंजस्य की राजनीति देखने को मिलती है उसके जनक गांधी है।
प्रोफे. बाजपेयी ने कहा कि आध्यात्मिकता किताबों में मिलती है। टेलीविजन पर, धारावाहिकों में मिलती है लेकिन असली जिंदगी में इसका नितांत अभाव है। उसे आज सही मायने में खोजने की जरूरत है। यदि जीवन में आध्यात्मिकता उतर आए तो लोकतांत्रिक मूल्य भी मजबूत होंगे और आज की राजनीति भी सशक्त और शुचितापूर्ण होगी। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता किसी सामान्य वस्तु का नाम नहीं है। यह विचार का नाम भी नहीं है। जब हम शोध, अनुसंधान करते हुए आत्मा के स्वरूप और उसकी विशेषताओं को जीवन में उतारेंगे तो ही वह आध्यात्मिकता कहलाएगी। उन्होंने आगे कहा कि सर्वकालिकता का गुण आध्यात्मिकता का प्रमुख गुण है। वह सर्व-व्यापक है। वह हमारे जन्म लेने से पूर्व भी और बाद में भी रहती है। उदयपुर के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डीएस कोठारी का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि उनकी वैज्ञानिक विशेषताओं और शोधों में अध्यात्मिकता शामिल थी, वैसे ही जैसे आत्मा का परमात्मा के साथ समन्वय होता है। हमें उसी चीज की तलाश करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि तात्कालिकता व्यक्ति का और उसके कामकाज का हिस्सा होती है लेकिन सार्वकालिकता सार्वभौमिक है जो हमारे कामकाज को मजबूत बनाती है। हमारे विचार और चिंतन को सशक्त और लोक कल्याणकारी बनाती है। उन्होंने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि हमें इतिहास में हमारे महापुरुषों से जुड़ी कई घटनाएं पढ़ाई गईं। रानी दुर्गावती ने कितने युद्ध जीते लेकिन उसका जिक्र नहीं किया गया। एक युद्ध की हार का जिक्र हर जगह किया गया। महाराणा प्रताप का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे महापुरुषों से सीखने और समझने की बात होनी जरूरी है। उनकी जीवटता और संघर्ष से हमारी नई पीढ़ी सीख ले सकती है।


उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी पढ़ाई-लिखाई और अंक-तालिका में उलझी पड़ी है। हम अंको में देखकर यह बताते हैं कि किसने, कितने अंक प्राप्त किए लेकिन उन अंको के प्राप्त करने के बाद उनके मूल्य और जीवन संस्कृति के जरिए कितनी आध्यात्मिकता विकसित हो पाई, अगर इसकी जानकारी होती तो बेहतर होता। हमें नई पीढ़ी में आध्यात्मिकता विकसित करनी होगी।
व्याख्यानमाला के मुख्य अतिथि राजस्थान स्टेट हायर एजुकेशन काउंसिल के वाइस चेयरमैन प्रोफे. दरियाव सिंह चूंडावत ने कहा कि मोहनलाल सुखाड़िया की राजनीति सर्वश्रेष्ठ राजनीति का उदाहरण है, उन्होंने विकास के नए प्रतिमान स्थापित किए जो आज की राजनीति में देखने को मुश्किल से मिलते हैं।
इस अवसर पर “राजस्थान के बाबूजी- मोहनलाल सुखाड़िया” पुस्तक का अतिथियों ने विमोचन किया।
कार्यक्रम के अध्यक्षीय उद्धबोधन में कुलपति प्रो. आई वी त्रिवेदी ने कहा कि विश्वविद्यालय की ओर से प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले सुखाड़िया स्मृति व्याख्यान सुखाड़िया जी को विनम्र श्रद्धांजलि है। इस व्याख्यान के जरिये नवाचारों से युक्त अकादमिक चर्चाएं होती हैं। उन्होंने कहा कि भविष्य में भी देश के प्रमुख शिक्षाविदों और चिंतकों के विचार सुनने को मिलेंगे। प्रो. त्रिवेदी ने प्रो. वाजपेयी और प्रो. चूंडावत को स्मृति चिन्ह भेंटकर उनका अभिनन्दन किया।
कार्यक्रम के आरम्भ में छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. शूरवीर सिंह भाणावत ने उक्त व्याख्यानमाला का परिचय देते हुए सभी का स्वागत किया। कुलसचिव सी आर देवासी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम में सुखाड़िया जी के परिजन नीलिमा सुखाड़िया एवम दीपक सुखाड़िया मौजूद थे।

सम्पादक

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