श्रीकांत वर्मा पीठ का आयोजन ; व्याख्यान, कविता-पाठ और रंग-प्रस्तुति…
श्रीकांत की कवितायेँ अपने समय से सच्चा संवाद करती हैं…
बिलासपुर . ‘श्रीकांत वर्मा की कविताओं में नाराजगी, असहमति और विरोध के स्वर अधिक तेज और मुखर होते साफ़ दिखते हैं . उनकी कविता हर अमानवीयता, झूठ और फरेब के विरुद्ध प्रतिरोध का सार्थक वक्तव्य है . उनकी कविता जनता की आवाज़ है . श्रीकांत के अन्दर का कवि समय से सीधा संवाद करता है . प्रकृति से सीधा जुड़ता है . श्रीकांत पूरी ताकत और शिद्दत के साथ समय और उसकी विद्रूपताओं से टकराते ही नहीं हैं बल्कि उसका हल भी सुझाते हैं . यह उनकी कविताओं की अप्रतिम सफलता है’ . उक्त विचार कवि-साहित्यकार रामकुमार तिवारी की अगुआई में नवगठित श्रीकांत वर्मा पीठ के पहले कार्यक्रम ‘श्रीकांत वर्मा का साहित्यिक अवदान’ के व्याख्यान-सत्र के दौरान कार्यक्रम के अध्यक्ष और संभागायुक्त डॉ संजय अलंग ने बुधवार को सिम्स ऑडिटोरियम में व्यक्त किये .
बिलासपुर में जन्में, पले-बढ़े और देश-विदेश के साहित्याकाश और राजनीति में धूमकेतु बनकर उभरे मूर्धन्य कवि, लेखक, साहित्यकार, पत्रकार और राजनेता श्रीकांत वर्मा की पुण्य तिथि पर बुधवार, 25 मई को यह व्याख्यान-माला आयोजित थी . सत्र में श्रीकांत वर्मा की पुत्रवधु एन्का वर्मा खास तौर पर मौजूद थी . संगोष्ठी में नरेश सक्सेना (लखनऊ) विनोद भारद्वाज (दिल्ली) गीत चतुर्वेदी (भोपाल) जयप्रकाश (दुर्ग) ने भी शिरकत की और श्रीकांत वर्मा के रचना-संसार और उनके साथ गुजरे पलों को साझा किया .
डॉ अलंग ने आगे कहा कि श्रीकांत की कविताएँ समूचे विश्व, भारतीय समाज और विशेषकर राजनीति में व्याप्त व्याधिग्रस्त अमानवीय व्यवहार, कार्यों और प्रवृतियों को उधेड़कर कर उसे तीखे स्वर में अभिव्यक्त करती हैं . उन्होंने ऐतिहासिक प्रतीकों और बिम्बों के जरिये ऐसी ताकतों को सीधे निशाने में लिया और अपने अन्दर की आग और उससे तप्त बहते लावे को अभिव्यक्त करने में सफल रहे . डॉ अलंग ने श्रीकांत की दो कवितायेँ ‘कालीन’ और ‘कोसल में विचारों की कमी है’ भी पढ़ीं .
व्याख्यान-सत्र के दौरान वरिष्ठ साहित्यकार नरेश सक्सेना ने कहा कि श्रीकांत जी की कविता में एक लय है . उसमें अपने समय से सच्चा संवाद है. उन्होंने अपने चिर-परिचित अंदाज़ में बात आगे बढ़ाई कि आज के दौर में ठेठ गद्य में अच्छी कवितायेँ लिखी जा रही हैं लेकिन बिना लय के जीवन नहीं चलता . हर शब्द, हर पंक्ति गद्य ही है लेकिन जैसे ही वह पूरी हो जाती है कविता की भाषा हो जाती है .
उन्होंने श्रीकांत जी की कविता ‘वैशाली…’ को पूरी लय और ताल के साथ गाते हुए बताया कि वैशाली के बदले केवल वैशाली ही मिलेगी- यह कविता 4 मात्रा की कहरवा ताल में निबद्ध है . उसीप्रकार ‘कोसल में विचारों की कमी है, कोसल अधिक दिन टिक नहीं सकता’ कविता भी तालबद्ध है . वर्मा जी की कविता का गद्य स्वरुप होने के बावजूद उसमें लयबद्धता है .
व्याख्यान में दुर्ग से जयप्रकाश ने अपने लम्बे वक्तव्य में श्रीकांत की काव्य-यात्रा व हिंदी साहित्य में उनके योगदान को रेखांकित किया .
भोपाल से आये गीत चतुर्वेदी ने श्रीकांत वर्मा के कविता-संसार की मीमांसा करते हुए कहा कि जिस तरह गंगा और यमुना के बीच सरस्वती अदृश्य होकर भी अस्तित्व में रहती हैं वैसे ही श्रीकांत के अन्दर राजनीति और कविता के बीच फिलासफी अदृश्य होकर भी बहती रहती है . उन्होंने कहा कि श्रीकांत की कविताओं का सार तत्व यही था कि सत्ता नहीं सत्य के लिए लड़ाईयां लड़ी जानी चाहिए . राजनीति में होने के बावजूद श्रीकांत हिंदी के सत्यान्वेषी कवि हैं . श्रीकांत मुखर राजनीतिक कवि थे लेकिन एक राजनीतिक दल से जुड़े होने के बावजूद उनकी कविताएं राजनैतिक घोषणा-पत्र नहीं लगती थी . सही मायने में श्रीकांत हिंदी साहित्य के एक नाराज कवि की भूमिका में दिखाई देते हैं .
दिल्ली से आये श्रीकांत वर्मा के समकालीन कवि विनोद भारद्वाज ने उनके साथ अपने अनेक संस्मरण सुनाये . उन्होंने श्रीकांत के लिए लिखी उनकी जीवनी के कुछ अंश भी पढ़ कर सुनाये . उन्होंने बताया कि श्रीकांत में उर्दू भाषा का गहरा असर था . बचपन से ही उनका छत्तीसगढ़ की प्रकृति और यहाँ के जंगलों से विशेष लगाव था . वे खुद कहते थे कि छत्तीसगढ़ के भीतरी इलाकों के गाँव के जीवन से उनके अन्दर का कवि जागा था .
विनोद भारद्वाज ने कहा कि बिलासपुर में आकर श्रीकांत वर्मा की कविता ‘घर-धाम’ की पंक्ति उन्हें रह-रहकर याद आ रही है- ‘महुए के वन में कंडे-सा मैं सुलगना चाहता हूँ’ . वही असली श्रीकांत वर्मा है .
पूरी व्याख्यान-माला के दौरान श्रीकांत जी की पुत्र-वधु एन्का वर्मा भी मौजूद थी . कार्यक्रम का ओजस्वी संचालन महेश वर्मा ने किया .
दूसरा सत्र ; कविता पाठ…
शिशु लोरी के शब्द नहीं, संगीत समझता है…
‘श्रीकांत वर्मा का साहित्यिक अवदान’ कार्यक्रम का दूसरा सत्र कविता-पाठ का रखा गया था . शाम को सिम्स ऑडिटोरियम में कविवर नरेश सक्सेना, विनोद भारद्वाज, गीत चतुर्वेदी, शरद कोकास (दुर्ग) जोशना बेनर्जी आडवानी (आगरा) विश्वासी एक्का (अंबिकापुर) और विनय ‘साहिब’ (लखनऊ) में अपनी-अपनी कवितायेँ पढ़ीं . कवि नरेश सक्सेना की पहली कविता ने ही समां बाँध दिया . शिशु लोरी के शब्द नहीं, संगीत समझता है, बाद में सीखेगा भाषा, अभी वो अर्थ समझता है . तुम्हारे वेद-पुराण, कुरान अभी वो व्यर्थ समझता है . उन्होंने ‘इस बारिश में’, ‘मछलियों पर दो कवितायेँ’, ‘जिन्दा लोग ज्यादा देर इंतजार नहीं करते’ , ‘गिरना’ आदि अनेक कवितायेँ सुनाई . कवि विनोद भारद्वाज ने ‘मोनालिसा हिरणों का शिकार करती स्त्रियाँ’ सुनाई . गीत चतुर्वेदी की कविता ‘एक कश्मीरी बच्चे का ख़त’ और ‘पुल गिरने से मरे आदमी के घर में’ ने श्रोताओं के मन-मस्तिष्क को अन्दर तक झकझोर दिया . कवि शरद कोकास ने भी 5 कवितायेँ और एक कवितांश पढ़ा. ‘शेष’, ‘टूटा तारा’ और ‘किताबों की गंध’ में उनकी ओजपूर्ण वाणी ने श्रोताओं के साथ सीधा तादात्म्य स्थापित किया . विनय, जोशना और विश्वासी की धीर-गंभीर कवितायेँ भी उल्लेखनीय थीं .
तीसरा और अंतिम सत्र ; रंग-प्रस्तुति…
‘श्रीकांत वर्मा का साहित्यिक अवदान’ पर केन्द्रित लगभग दिन भर के कार्यक्रम में देर शाम को रायपुर के नाट्य-निर्देशक राजकमल नायक के निर्देशन पर उनकी कविताओं का सजीव मंचन किया गया . कोसल गणराज्य, कोसल में विचारों की कमी, कोसल के शैली, काशी का न्याय, हस्तक्षेप, नियम सहित श्रीकांत जी की 8 कविताओं की संगीतमय प्रभावी प्रस्तुति बरबस ही ध्यान आकृष्ट कर रही थी . राजकमल नायक के सधे हुए निर्देशन ने श्रीकांत जी की कविताओं के यथार्थवादी स्वरुप के साथ पूरा न्याय किया .
श्रीकांत वर्मा पर केन्द्रित कार्यक्रम ‘श्रीकांत वर्मा का साहित्यिक अवदान’ का आयोजन ‘श्रीकांत वर्मा पीठ’ की ओर से किया गया था . विगत दिनों छत्तीसगढ़ सरकार ने श्रीकांत वर्मा पीठ की स्थापना की घोषणा की थी . बिलासपुर के कवि, साहित्यकार रामकुमार तिवारी ‘पीठ’ के अध्यक्ष बनाये गए हैं . श्रीकांत वर्मा के अवसान दिवस 25 मई को उन पर केन्द्रित कार्यक्रम के सूत्रधार रामकुमार तिवारी थे . श्री तिवारी ने कार्यक्रम के आरम्भ में श्रीकांत वर्मा की पुत्र-वधु एन्का वर्मा सहित सभी अतिथियों और देश-भर से आये कवि-साहित्यकारों का सम्मान किया . कार्यक्रम के अंत में श्री तिवारी ने सभी आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया . पूरे कार्यक्रम का प्रभावशाली तरीके से संचालन महेश वर्मा ने किया .