...कि घुँघरू टूट गये, कथक सम्राट बिरजू महाराज नहीं रहे…2019 में बिलासपुर भी आये थे…

नई दिल्ली . प्रसिद्ध कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज नहीं रहे। पद्म विभूषण से सम्मानित 83 साल के बिरजू महाराज ने रविवार की देर रात अंतिम सांस ली। लखनऊ घराने से ताल्लुक रखने वाले बिरजू महाराज का असली नाम बृजमोहन मिश्रा था।

बिरजू महाराज को तबीयत खराब होने के बाद दिल्ली के साकेत अस्पताल में भर्ती कराया गया था । बिरजू महाराज के निधन से कथक भाव-शून्य हो गया ।
लखनऊ के कथक घराने में पैदा हुए बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज और चाचा शम्भू महाराज का नाम देश के प्रसिद्ध कलाकारों में शुमार था। उनका बचपन का नाम बृजमोहन मिश्रा था। पिता के जल्द गुजर जाने के बाद उन्होंने अपने चाचा से कथक का प्रशिक्षण लेना शुरू किया।
कथक के पर्याय रहे बिरजू महाराज देश के प्रसिद्ध शास्त्रीय नर्तक थे। वे भारतीय नृत्य की कथक शैली के आचार्य और लखनऊ के ‘कालका-बिंदादीन’ घराने के प्रमुख थे।
बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी 1938 को हुआ था। बचपन से मिली संगीत व नृत्य की शास्त्रीय शिक्षा के सटीक ज्ञान से बिरजू महाराज ने अनके नृत्यावलियों जैसे गोवर्धन लीला, माखन चोरी, मालती-माधव, कुमार संभव व फाग- बहार इत्यादि की रचना की। सत्यजीत राय की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ के लिए भी इन्होंने उच्च कोटि की दो नृत्य नाटिकाएं रचीं। इन्हें ताल वाद्यों की विशिष्ट समझ थी . तबला, पखावज, ढोलक, नाल और तार वाले वाद्य वायलिन, स्वर मंडल व सितार इत्यादि के सुरों का भी उन्हें गहरा ज्ञान था।

अपने जीवन काल में बिरजू महाराज को अनेक सम्मान मिले । 1986 में उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा कालिदास सम्मान भी उन्हें मिला । काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय से उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि मानद मिली। 2016 में हिन्दी फ़िल्म बाजीराव मस्तानी में ‘मोहे रंग दो लाल’ गीत पर नृत्य-निर्देशन के लिए उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। 2002 में उन्हें लता मंगेश्कर पुरस्कार से नवाजा गया। 2012 में ‘विश्वरूपम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन का और 2016 में ‘बाजीराव मस्तानी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।
बिरजू महाराज मार्च, 2019 को बिलासपुर आये थे…

बिलासपुर की सांस्कृतिक संस्था “बावरा मन” के प्रमुख पी. रामाराव ने बताया कि स्पिक-मैके, कला मंजरी कथक संस्थान, भातखंडे संगीत महाविद्यालय और बावरा मन सांस्कृतिक संस्था के एक संयुक्त आयोजन में बिरजू महाराज के कदम बिलासपुर में भी पड़े थे . बिलासपुर में बिरजू महाराज के शिष्य रितेश शर्मा के विशेष अनुरोध पर उनका यहाँ आना हुआ . सिम्स ऑडिटोरियम में 24 मार्च 2019 को कथक आशीष संध्या “गुरुवे नमः” का आयोजन किया गया था .
पं. बिरजू महाराज के अनूठे अंदाज ने इस आयोजन को यादगार बना दिया । उन्होंने बैठकी भाव में नृत्य से ऐसा सम्मोहन पैदा किया कि लोग लय-छंद के रस में मगन हो उठे।
ठुमरी, होरी-गीत और भजन की बंदिशों पर उन्होंने कथक नृत्य के भावों को सजाया। कथक नृत्य सम्राट ने बैठकी भाव में बंदिशों पर सुर भी लगाए और नृत्य के भावों की जुगलबंदी भी की।
कथक नृत्य सम्राट ने बिलासपुर में जिंदगी की तुलना नृत्य की लय से की। लय हर एक ही धड़कन में होती है।
उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत ईश्वर से मिलन का मार्ग है। लय, सुर, ताल के जरिए आसानी से परमात्मा का साक्षात्कार किया जा सकता है।
