हाईकोर्ट ने आईपीएस मुकेश गुप्ता के पदोन्नति आदेश को निरस्त करने के राज्य शासन के फैसले को सही ठहराया

हाईकोर्ट ने आईपीएस मुकेश गुप्ता के पदोन्नति आदेश को निरस्त करने के राज्य शासन के फैसले को सही ठहराया

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस की युगल पीठ ने निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता के डिमोशन के मामले में राज्य शासन की अपील स्वीकार कर ली है . हाईकोर्ट ने उनका प्रमोशन आदेश निरस्त करने के शासन के फैसले को सही ठहराया है . हाईकोर्ट ने कैट से मुकेश गुप्ता को मिली राहत के आदेश को भी निरस्त कर दिया है .
उप-महाधिवक्ता जितेन्द्र पाली ने बताया कि आईपीएस मुकेश गुप्ता को पूर्ववर्ती राज्य सरकार ने वर्ष 2018 में प्रमोशन देकर एडीजी से डीजी बना दिया था . चुनाव के बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार ने मुकेश गुप्ता को केंद्र की अनुमति के बगैर मिली पदोन्नति को वर्ष 2019 में एक आदेश जारी कर निरस्त कर दिया था .
मुकेश गुप्ता ने राज्य शासन के इस आदेश के खिलाफ केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) में आवेदन किया . कैट ने अप्रैल 2022 में गुप्ता के पक्ष में आदेश दिया और शासन के प्रमोशन निरस्त करने के आदेश पर रोक लगा दी .
राज्य शासन ने कैट के इस फैसले को अवैधानिक बताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी . याचिका में कहा गया कि मुकेश गुप्ता को केंद्र सरकार की अनुमति के बगैर प्रमोशन दिया गया है . प्रारंभिक तौर पर हाईकोर्ट ने मामले में स्थगन आदेश दिया था .
उप-महाधिवक्ता जितेंद्र पाली ने बताया कि हाईकोर्ट में राज्य शासन की अपील पर विगत 6 सितम्बर 2022 को अंतिम सुनवाई हुई . सुनवाई के दौरान राज्य शासन की ओर से सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी और उप-महाधिवक्ता जितेंद्र पाली, केंद्र सरकार की तरफ से असिस्टेंट सालिसिटर जनरल रमाकांत मिश्रा व अन्य ने पैरवी की . सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था .
हाईकोर्ट में बुधवार को चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की युगल पीठ ने फैसला सुनाया . हाईकोर्ट के फैसले में राज्य शासन की अपील स्वीकार कर ली गई है . हाईकोर्ट ने मुकेश गुप्ता के प्रमोशन आदेश को निरस्त करने के राज्य शासन के फैसले को सही ठहराया है . हाईकोर्ट ने कैट से मुकेश गुप्ता को मिली राहत के आदेश को भी निरस्त कर दिया है .

उप-महाधिवक्ता जितेंद्र पाली ने पूरे मामले की विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि केन्द्र शासन ने वर्ष 2017 में छत्तीसगढ़ के लिए 4 डायरेक्टर जनरल के पद की स्वीकृति प्रदान की थी। तात्कालिक छत्तीसगढ़ शासन द्वारा 04/12/2017 को डायरेक्टर जनरल के 3 अतिरिक्त नवीन पद सृजन करने का निर्णय लिया। छत्तीसगढ़ शासन ने केन्द्र शासन को पत्र के माध्यम से डायरेक्टर जनरल के 3 नवीन पदों को 2 वर्षों के लिए सृजित करने की जानकारी दी तथा इस हेतु केन्द्र सरकार से स्वीकृति हेतु आग्रह किया। जिस पर केन्द्र शासन द्वारा आपत्ति प्रकट करते हुए राज्य शासन को पहले नवीन पदों के सृजन के लिए प्रस्ताव भेजने हेतु कहा गया। तात्कालिक गृह मंत्री भारत सरकार द्वारा अपने पत्र दिनांक 12/01/2018 द्वारा तात्कालिक मुख्यमंत्री छग शासन को पत्र के माध्यम से 3 अतिरिक्त पदों के सृजन में असहमति व्यक्त की। तत्पश्चात छग शासन द्वारा वर्ष 2018 में केन्द्र सरकार की स्वीकृति की प्रत्याशा में 3 पुलिस महानिदेशक के पद सृजित कर 06/10/2018 को पदोन्नति प्रदान की गई थी। उक्त तथ्यों की जानकारी छग शासन के समक्ष आने पर 24/09/2019 को उक्त पदोन्नति के संबंध में कैबिनेट के समक्ष जानकारी प्रस्तुत की गई। जिस पर कैबिनेट ने विचार करते हुए 06/10/2018 को दिए गए पदोन्नति आदेश को निरस्त करने का निर्णय लिया। तदानुसार कॅबिनेट मिटिंग में लिए गए निर्णय के अनुपालन में दिनांक 26/09/2019 को 3 पदो पर महानिदेशक के पदोन्नति को निरस्त करने का आदेश जारी किया गया।
उक्त पदावनत आदेश के विरूद्ध मुकेश गुप्ता द्वारा केन्द्रीय प्रशासनिक प्राधिकरण जबलपुर के समक्ष ओरिजनल एप्लीकेशन प्रस्तुत किया गया था। जिसमें केन्द्रीय प्रशासनिक प्राधिकरण ने सुनवाई करते हुए 12/04/2022 को आदेश पारित कर पदावनत आदेश 26/09/2019 को निरस्त कर दिया तथा राज्य सरकार को आदेशित किया कि मुकेश गुप्ता को समस्त लाभ सहित पदोन्नत पद पर 3 माह के भीतर पदस्थ किया जाए।
केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण द्वारा पारित आदेश के बाद छत्तीसगढ़ शासन द्वारा उच्च न्यायालय बिलासपुर की युगल पीठ के समक्ष एक रिट याचिका प्रस्तुत की। जिस पर प्रारंभिक तौर पर उच्च न्यायालय ने केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण द्वारा पारित आदेश पर 04/07/2022 को स्थगन आदेश पारित किया। तत्पश्चात न्यायालय ने दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत तकों को सुना। उच्च न्यायालय में प्रकरण की अंतिम सुनवाई 06/09/2022 को हुई जिसमें न्यायालय ने अपना निर्णय सुरक्षित रखा। तत्पश्चात 28/09/2022 को उच्च नयायालय अपना निर्णय पारित किया जिसमें उच्च न्यायालय ने केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण द्वारा पारित आदेश को अपास्त कर दिया।

सम्पादक

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