हाईकोर्ट ; आरक्षण संशोधन विधेयक मामला, राज्यपाल सचिवालय को जारी नोटिस पर रोक…

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की एकल पीठ ने शुक्रवार को आरक्षण संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर न करने के मामले में राज्यपाल सचिवालय को पूर्व में जारी नोटिस पर रोक लगा दी है .
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राज्यपाल सचिवालय को आरक्षण संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर न होने के संबंध नोटिस जारी किया था . उक्त नोटिस के विरुद्ध राज्यपाल सचिवालय द्वारा उच्च न्यायालय में रिकॉल एप्लीकेशन फाईल किया गया था .
रिकॉल एप्लीकेशन के माध्यम से उच्च न्यायालय में दलील दी गई कि भारत के संविधान में उल्लेखित अनुच्छेद 200 के अनुरूप विधानसभा द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल अनुमति दे सकता है, रोक सकता है, राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रख सकता है . राज्यपाल के प्रतिनिधि के रूप में सचिव को भी इस आशय का नोटिस जारी नहीं किया जा सकता है .
आरक्षण के मुद्दे पर राज्य सरकार व एक एडवोकेट की याचिका पर हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद नोटिस जारी की थी जिसे राज्यपाल सचिवालय ने गुरूवार को रिकॉल आवेदन देकर इस पर रोक लगाने की मांग की थी . सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था जिसे शुक्रवार को सुनाया गया .
पूर्व असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल और सीबीआई व एनआईए के विशेष लोक अभियोजक बी. गोपा कुमार ने बताया कि आरक्षण संशोधन विधेयक पर निर्णय लेने में विलम्ब करने पर राज्य शासन और एक एडवोकेट ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी . हाईकोर्ट ने 6 फरवरी को छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के सचिवालय को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया था . गुरूवार, 9 फरवरी को राज्यपाल के सचिवालय की ओर से उन्होंने एक रिकॉल आवेदन प्रस्तुत कर नोटिस पर रोक लगाने की मांग की थी . आवेदन में यह भी कहा गया कि संविधान के आर्टिकल 361 के तहत राष्ट्रपति व राज्यपाल अपने कार्यालयों की शक्तियों और कर्तव्यों के प्रयोग के लिए किसी भी न्यायालय के प्रति जवाबदेह नहीं हैं . राज्यपाल को किसी मामले में पक्षकार नहीं बनाया जा सकता . प्रस्तुत आवेदन में इस आधार पर जारी की गई नोटिस को वापस लेने की मांग की गई . हाईकोर्ट में मामले में सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया गया था .
हाईकोर्ट में शुक्रवार को जस्टिस रजनी दुबे की एकल पीठ ने फैसला सुनाते हुए आरक्षण संशोधन विधेयक मामले में राज्यपाल सचिवालय को पूर्व में जारी नोटिस पर स्टे दे दिया है .
छत्तीसगढ़ सरकार ने लगभग दो महीने पहले, 2 दिसम्बर 2022 को विधानसभा के विशेष सत्र में राज्य में विभिन्न वर्गों के लिए आरक्षण का प्रतिशत बढ़ा दिया था . नए आरक्षण विधेयक के अनुसार छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति के लिए 32 फीसदी, ओबीसी के लिए 27 फीसदी, अनुसूचित जाति के लिए 13 फीसदी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 4 फीसदी आरक्षण कर दिया गया था . राज्य सरकार ने नियमानुसार उक्त विधेयक को राज्यपाल के पास स्वीकृति के लिए भेजा था . राज्यपाल ने इसे स्वीकृत न कर उसे अपने पास ही रख लिया . राज्यपाल द्वारा विधेयक स्वीकृत नहीं करने और उसे रोके रखने पर एडवोकेट हिमांक सलूजा और राज्य शासन ने हाईकोर्ट में इस आशय की याचिकायें दायर की थी . याचिकाओं में कहा गया कि राज्यपाल को विधानसभा में पारित किसी भी बिल को रोके रखने का अधिकार नहीं है . यह संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लंघन है .
हाईकोर्ट में विगत सोमवार को जस्टिस रजनी दुबे की एकल पीठ के समक्ष दोनों याचिकाओं पर प्रारंभिक सुनवाई हुई थी . एडवोकेट सिब्बल के साथ हाईकोर्ट के महाधिवक्ता सतीशचंद्र वर्मा भी थे . मामले में याचिकाकर्ता हिमांक सलूजा की तरफ से हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट डॉ. निर्मल शुक्ला और शैलेंद्र शुक्ला ने भी बहस की थी.