भयावह आग ; रह-रहकर धधक उठते हैं छत्तीसगढ़ के जंगल…
छत्तीसगढ़ के ज्यादातर जंगल इस समय आग की चपेट में हैं . भीषण गर्मीं से बिलासपुर फारेस्ट सर्किल में भी रह-रहकर लगने वाली आग बेकाबू हो जाती हैं . सोमवार को बिलासपुर के निकट अचानकमार टाइगर रिजर्व के बफर जोन के पास बारीघाट तक जंगल की आग पहुँच गई थी . वन विभाग का जमीनी अमला अपनी 12 सूत्री मांगों को लेकर पिछले 21 मार्च से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं . वन अधिकारियों के अनुसार हड़ताल के बावजूद वन विकास निगम के कर्मियों और स्थानीय वन विकास समितियों के सहयोग से आग पर काबू पा लिया गया है .
सीसीएफ राजेश चंदेले ने बताया कि गर्मी के समय जंगल में आग लगने की घटनाएँ हो जाना स्वाभाविक है . वनांचल क्षेत्रों में कभी-कभी मानवीय कारणों से अथवा प्राकृतिक कारणों से आग लगती है . वन विभाग आग पर काबू पाने के लिए विभिन्न उपाय कर रहा है . वन-क्षेत्र में लगभग प्रत्येक बीट में फायर-वॉचर की व्यवस्था की गई है . स्थानीय स्तर पर वन प्रबंधन समिति का गठन कर वन सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है . इसके अतिरिक्त एंटी फायर ब्लोअर भी वन विभाग के पास उपलब्ध हैं जिससे फायर लाइन बनाने में मदद मिलती है . जहाँ कहीं भी आग लगने की घटना होती है वहां इनकी सहायता से तत्काल आग को नियंत्रित कर लिया जाता है .
उन्होंने बताया कि फारेस्ट सर्वे ऑफ़ इंडिया से प्राप्त सेटेलाईट तस्वीरों से हमें जीपीएस लोकेशन के साथ रियल-टाइम मेसेज मिल जाते है जिससे पता चलता है कि आग इस समय कहाँ-कहाँ लगी हुई है .
उन्होंने कहा कि बिलासपुर सर्किल के वन-क्षेत्र में कहीं भी आग लगने की बड़ी घटना की सूचना फ़िलहाल नहीं है . कुछ क्षेत्रों में छोटी-मोटी फायर की घटनाएँ अवश्य हुई हैं जिन्हें समय रहते नियंत्रित कर लिया गया है .
सीसीएफ ने माना कि वनकर्मियों की हड़ताल का असर वन संरक्षण पर पड़ा है . हड़ताल से स्टाफ की तैनाती के साथ-साथ सूचना-तंत्र पर भी विपरीत असर पड़ा है . सेटेलाईट के माध्यम से फायर पॉइंट की सूचना मिलने पर विभाग को बचाव के उपाय करने में विलम्ब हो रहा है तथापि स्थिति नियंत्रण में है .
डीएफओ कुमार निशांत ने भी बताया कि जंगल में आग लगने का एक बहुत बड़ा कारण स्थानीय ग्रामीणों द्वारा महुआ संग्रहण करना है . पेड़ से महुआ फल गिरकर जमीन में पड़े पत्तों में छिप जाता है . ग्रामीण इस पत्तों पर आग लगा देते हैं और उसे बुझाने की जहमत नहीं उठाते, जिसकी वजह से आग जंगल में फ़ैल जाती है . एक सप्ताह पूर्व बेलगहना और रतनपुर के वन-क्षेत्र में आग लगी थी जिसे बुझा लिया गया था .
अचानकमार टाइगर रिजर्व क्षेत्र के प्रभारी जगदीशन ने बताया कि एटीआर क्षेत्र में आग पर नियंत्रण पाने के लिए फायर-लाइन कटाई का काम हो चुका है . इसके अलावा 30 की संख्या में एंटी-फायर ब्लोअर भी दिए गए है और इसके प्रभावी इस्तेमाल की ट्रेनिंग भी विगत फरवरी माह में दे दी गई है . फायर की सूचना पर उसे तुरंत बुझा दिया जाता है . उन्होंने बताया कि सोमवार को एटीआर क्षेत्र से लगे बारीघाट में आग लगने की घटना हुई थी . वन विभाग और वन विकास निगम के वन-कर्मियों ने आग फ़ैलने से पहले उस पर नियंत्रण पा लिया है . उन्होंने इस बात से इनकार किया कि आग एटीआर के बफर जोन तक पहुँच गई थी . उन्होंने आग लगने का कारण मानवीय लापरवाही बताया है . जंगल में ग्रामीणों की आवाजाही, बीड़ी जलाने और महुआ बीनने की प्रक्रिया में आग लगा देने वाली समस्या बनी हुई है . इस बार वन-ग्रामों में ग्रामीणों को आग के दुष्परिणाम से अवगत भी कराया गया है . बावजूद इसके कुछ घटनाएँ हो ही जाती है .
उन्होंने बताया एटीआर में आग फैलने की संभावना बहुत ही कम है . उन्होंने स्वीकार किया कि वनकर्मियों की हड़ताल का असर वन संरक्षण में पड़ा जरूर है लेकिन एटीआर में पास 200 पैदल गार्ड हैं, फायर-वॉचर भी हैं जो तत्काल आग बुझाने में कामयाब रहे हैं . इस समय 90 से अधिक बीट पर मौजूद बीट गार्ड को वन विभाग ने जीरो फायर की अवस्था बनाये रखने के लिए सम्मानित करने का ऐलान भी किया है .
उन्होंने बताया कि करीब एक सप्ताह पूर्व वन विकास निगम के क्षेत्र पटेटा बेरियर के बाजू के जंगल में तथा शिवतराई से थोड़ा आगे आग लगी थी, जिसे बुझा लिया गया था .
खबर है कि बेलगहना रेंज के केंदा परिवृत्त, बिलासपुर वनमंडल से मरवाही वनमंडल के खोडरी परिवृत्त और बेलपत परिवृत्त में पिछले दिनों भीषण आग देखी गई थी .