सरकार की मजदूर विरोधी, जनविरोधी, राष्ट्रविरोधी नीतियों के खिलाफ व्यापक संघर्षो को आगे बढ़ाएँ…एटक
बजट को मज़ाक बनाकर रख दिया गया, इससे देश में असमानता बढ़ी…अमरजीत कौर

सरकार की मजदूर विरोधी, जनविरोधी, राष्ट्रविरोधी नीतियों के खिलाफ व्यापक संघर्षो को आगे बढ़ाएँ…एटकबजट को मज़ाक बनाकर रख दिया गया, इससे देश में असमानता बढ़ी…अमरजीत कौर

केंद्र सरकार शब्द जाल और जुमलों वाली सरकार है…

बिलासपुर . केन्द्रीय वित्त मंत्री द्वारा पेश किया गया बजट हमेशा की तरह जुमलेबाजी से भरा हुआ है। लोकलुभावन नए-नए शब्द गढ़े गए हैं, लेकिन बजट खोखला, गरीब विरोधी और अमीरों का हितैषी है। यह उन असमानताओं को और बढ़ाएगा जो पीएम नरेंद्र मोदी के लगभग 9 वर्षों के शासन की पहचान रही है। ये कहना है एटक की महासचिव अमरजीत कौर का। बुधवार को बिलासपुर प्रेस क्लब में पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बजट इस पृष्ठभूमि में आया है, जब ऑक्सफैंस की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि भारत की 1% शीर्ष आबादी, जिसके पास पिछले साल तक देश की कुल संपत्ति में 22% हिस्सेदारी थी, उसने अपना हिस्सा 40.5% तक बढ़ा लिया है, जबकि 50% निचले तबके के लोग, जिनके पास संपति में 13% हिस्सा था, अब केवल 3% हिस्सा बचा है। हमारे देश में अरबपति लॉकडाउन से पहले 102 थे और 2021 में बढ़कर 142 हो गए और इस नवीनतम रिपोर्ट में उनकी संख्या 166 हो गई है, जबकि भूख-सूचकांक 102 की स्थिति से और बिगड़ गया है, अब भारत 107 पर है। भारत में 19 करोड़ लोगों के स्थान पर अब भुखमरी की स्थिति बढ़कर 35 करोड़ हो गई है। सरकार ने खुद सुप्रीम कोर्ट में एक दलील में स्वीकार किया कि जो बच्चे मर रहे हैं, उनमें से 65% कुपोषण के शिकार रहे हैं। भारत सरकार के क्राइम ब्यूरो ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी कि देश में हो रही आत्महत्याओं में से 25% दिहाड़ी मजदूर हैं। इसी तरह मानव अधिकारों, लोकतांत्रिक मूल्यों, महिलाओं की स्थिति और सांस्कृतिक अधिकारों पर हमारा सूचकांक बद से बदतर होता जा रहा है। ट्रेड यूनियन छिनते रोजगार, बढ़ती बेरोजगारी, आवश्यक वस्तुओं में मूल्य वृद्धि, शिक्षा और स्वास्थ्य, बुनियादी नागरिक सेवाओं, गरीबों और निम्न आय वर्ग के लिए सब्सिडी वाली बिजली, न्यूनतम मजदूरी की गारंटी, सामाजिक सुरक्षा और पुरानी पेंशन नीति की मांग जैसे मुद्दों को उठाते रहे हैं। हम नई पेंशन योजना को खत्म करने और पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की मांग कर रहे हैं। लेकिन ये सारे मुद्दे सरकार के लिए अहम नहीं हैं और इन्हें बजट में जगह नहीं मिलती है। सार्वजनिक क्षेत्र पर सरकार का हमला जारी है। निजीकरण, विनिवेश और हमारे राष्ट्रीय संसाधनों और संपतियों की भारतीय और विदेशी ब्रांड के बड़े व्यापारिक निगमों को बिक्री की नीति जारी है। स्वीकृत पदों के विरुद्ध कोई भर्ती नियम अनुरूप नहीं की जा रही है। आउटसोर्सिग और ठेकेदारी सिसटम जारी है। निश्चित अवधि के रोजगार की शुरुआत से नौकरी की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। सरकार के एजेंडे के रूप में चार श्रम संहिताओं (लेबर कोड) के साथ लगभग 150 वर्षों के संघर्षों में कड़ी मेहनत से जीते गए श्रम अधिकारों को छीनने का प्रयास किया जा रहा है। सरकार चाहती है कि हमें ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की गुलामी के दौर में वापस फेंक दिया जाए।


उन्होंने कहा कि अन्न-ऋषि वह शब्द है जिसका उपयोग वित्त मंत्री ने यह कहते हुए किया था कि भारत अन्न का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक है, लेकिन मोदी राज में, अन्नदाता किसान को दिल्ली की सीमाओं पर तेरह महीने तक सभी गंभीर मौसमों का सामना करना पड़ा और तीन कृषि कानून, बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेने के लिए दबाव डाला और अपनी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग की। किसान आंदोलन में सात सौ से अधिक लोगों की मौत हो गई और किसानों से किए वादे आज तक अधूरे हैं। कोविड 19 में लॉक डाउन के दौरान सरकार ने सरकारी खजाने को 1.84 लाख करोड़ का नुकसान हुआ था, पर सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स को 30% से घटाकर 22% कर दिया। सरकार ने गैर आयकर भुगतान करने वाले परिवारों को 7500 रुपये देने की ट्रेड यूनियनों की मांग को पूरा करने से भी इनकार कर दिया। हम योजना कर्मियों के नियमितीकरण की मांग कर रहे हैं, जब तक ऐसा कानून लागू नहीं होता, तब तक कम से कम उन्हें वर्कर्स का दर्जा मिलना चाहिए और न्यूनतम वेतन, सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य कवरेज और सेवानिवृति का लाभ मिलना चाहिए।
उन्होंने कहा कि महिलाएं नौकरी चाहती हैं लेकिन सरकार देश में युवाओं और महिलाओं के मुद्दों पर पूरी तरह से विफल रही है। पुरुषों के साथ बड़ी संख्या में महिलाओं को रोजगार देने वाली मनरेगा की उपेक्षा की जाती है और उसका बजट 30% तक कम कर दिया गया है। पिछले साल यह बजट का 2.19% था, इस बार यह केवल 1.97% है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, वास्तविक बजट आवंटन में कमी की गई है। स्कूल बंद किए जा रहे हैं, विदेशी विश्वविद्यालय एजेंडे में हैं, प्रस्तावित कौशल प्रशिक्षण अंतरराष्ट्रीय कॉरपोरेट्स की जरूरतों को पूरा करने के लिए है। रहन-सहन महंगा हो रहा है लेकिन टीवी, मोबाइल, कैमरा, सस्ता हो गया है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट इस सच्चाई को उजागर करती है कि किस तरह यह सरकार बैंकों, बीमा के साथ-साथ जनता के पैसों से बनाए गए इंफ्रास्ट्रक्चर, पोर्ट, एयरपोर्ट, रेलवे आदि को अपने कॉरपोरेट दोस्तों को सौंपने के साथ-साथ बैंकों, बीमा के सार्वजनिक धन की लूट को संभव बना रही है। सरकार गरीबों, श्रमिकों, किसानों और आम लोगों के खिलाफ है। यह संप्रभुता और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था को नष्ट करने के लिए निकली है।
एटक की महासचिव अमरजीत कौर ने बताया कि 30 जनवरी 2023 को केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के मंच ने स्वतंत्र क्षेत्रीय संघों के साथ दिल्ली में मजदूरों का एक राष्ट्रीय सम्मेलन किया और सरकार की उन नीतियों का संज्ञान लिया जो मजदूर विरोधी, किसान विरोधी और राष्ट्र विरोधी हैं। इन नीतियों को उजागर करने के व्यापक अभियान राज्य, जिला और क्षेत्रीय सम्मेलनों, पदयात्राओं, साइकिल, मोटर साइकिल, जीप जत्थों द्वारा किए जाने का निर्णय लिया गया है। संयुक्त किसान मोर्चा के साथ भी कुछ कार्यों को करने का निर्णय लिया गया है। अलग-अलग क्षेत्रों में बढ़ते आक्रोश व आंदोलनों को ट्रेड यूनियनें सहयोग व समर्थन देंगी। वर्ष के अंत तक “राष्ट्र बचाओ, लोग बचाओ” के नारे के तहत देशव्यापी हड़ताल का आहवान किया गया है। उन्होंने साफ़ कहा कि जो लोग देश के लोगों और राष्ट्र के खिलाफ काम कर रहे हैं उन्हें नीतियों को बदलना होगा या आगामी चुनावों में लोगों द्वारा सत्ता से बाहर किए जाने के लिए तैयार रहना होगा।
पत्रकार वार्ता के दौरान उनके साथ एटक के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हरिद्वार सिंह,भगवान साहू सहित अन्य पदाधिकारी मौजूद रहे।

सम्पादक

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