बिलासा कला महोत्सव : गम्मत, पंडवानी, रंग-झांझर और 90 से अधिक वाद्य यंत्रों की प्रस्तुतियों ने मंत्रमुग्ध किया…

बिलासा कला महोत्सव : गम्मत, पंडवानी, रंग-झांझर और 90 से अधिक वाद्य यंत्रों की प्रस्तुतियों ने मंत्रमुग्ध किया…

बिलासपुर . दो दिवसीय बिलासा कला महोत्सव का बीती रात समापन हुआ . छत्तीसगढ़ में नवोदित कलाकारों को अपनी प्रतिभा दिखाने का सबसे बड़ा मंच बन गया है, बिलासा महोत्सव . महोत्सव के दूसरे दिन मुख्य अतिथि की आसंदी से छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल के अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव ने कहा भी कि यह मंच साहित्य, संस्कृति और सामाजिक सरोकार को पूरा कर रहा है . मंच के पूर्व अध्यक्ष और अब, महापौर रामशरण यादव ने भी मंच के कला उन्नयन के प्रयासों की प्रशंसा की . महोत्सव में विशिष्ट अतिथि के रूप में राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष डॉ लालित्य ललित की उपस्थिति उल्लेखनीय रही . उन्होंने कहा कि हर प्रदेश के संस्कृति की अपनी पहचान होती है, जहां कला अपने अलग अंदाज़ में निखरती है . दिल्ली से आए साहित्यकार डॉ संजीव कुमार और डॉक्टर अभय नारायण राय ने भी समापन समारोह को संबोधित किया . इस अवसर पर फिल्म निर्देशक गणेश मेहता, समाजसेवी मंसूर खान और खैरागढ़ के विनोद डोंगरे और साहित्यकार संजीव कुमार का सम्मान भी किया गया .
समापन दिवस पर लिमतरी से आए स्कूली छात्रों ने छत्तीसगढ़ी नृत्यों की मोहक प्रस्तुति दी . इसके बाद मशहूर पंडवानी गायिका तीजन बाई की शिष्या दूजन बाई (दिनेश गुप्ता) की पंडवानी, बालचंद साहू और हीलेंद्र ठाकुर का रंग-झांझर आकर्षण का केंद्र बना रहा . गुंडरदेही से आए कलाकार संजू सेन ने लगभग 100 वाद्य यंत्रों की प्रस्तुति देकर लोगों का मन मोह लिया . कार्यक्रम के आखिरी चरण में मन्नालाल गन्धर्व का गम्मत, छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोक-कला का उदहारण बना .

नदी किनारे ही संस्कृति पल्लवित हुई…

बिलासा कला महोत्सव दो दिनों का आयोजन था . प्रथम दिवस राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई . लोक संस्कृति संदर्भ छत्तीसगढ़ और नदियां विषय पर मुख्य अतिथि की आसंदी से अटल बिहारी वाजपेयी विवि के कुलपति एडीएन वाजपेयी ने कहा कि नदी किनारे ही अनेक संस्कृतियाँ पुष्पित-पल्लवित हुई और इसी संस्कृति से लोक-संगीत, लोक-गीत, लोक कथा और लोक-परंपरा पनपी . डॉ विनय कुमार पाठक ने भी कहा पूरा विश्व नदियों के किनारे बसा है . इसी के अनुरूप छत्तीसगढ़ की पूरी आबादी और बड़े शहर, सब नदियों के किनारे ही बसे हैं . साहित्यकार डॉ अजय पाठक ने कहा छत्तीसगढ़ के लोग उत्सवधर्मी हैं . विशिष्ट अतिथि डॉ पीसी लाल यादव ने कहा छत्तीसगढ़ में प्रवाहित नदियों के उद्गम से संगम तक उसके किनारे बसे लोगों ने ही अपनी महतारी कही जाने वाली नदी को प्रदूषित कर रखा है . विशिष्ट अतिथि पूर्व सांसद डॉक्टर गोविंद राम मिरी ने भी उद्बोधन दिया . इस अवसर पर साहित्यकार डॉ राजेश मानस के दो पुस्तकें पीरा ताजमहल के तथा जिंदगी के रंग का विमोचन किया गया .

सौ वाद्य यंत्रों के साथ संजू की मोहक प्रस्तुति…

महोत्सव के समापन दिवस पर गुंडरदेही से आए नवोदित कलाकार संजू सेन ने लगभग 100 वाद्य यंत्रों की प्रस्तुति के साथ लोगों का मन मोह लिया . बिलासा कला मंच के अध्यक्ष/संयोजक डॉक्टर सोमनाथ यादव ने बताया कि वह स्वयं तवेरा जाकर इस कलाकार को लेकर आए . संजू पहले बांसुरी बजाकर छोटे कार्यक्रमों में प्रस्तुति देते थे, इसके बाद उन्होंने विलुप्त होते वाद्य यंत्रों को नया रूपाकार दिया और अपनी एक टीम बनाई . संजू ने मीडियान्तर को बताया कि वह गांव में सैलून चलाता है . कोरोना महामारी के दौरान उसने अपने गांव के छोटे-छोटे कलाकारों को लेकर एक टीम बनाई . लोक कला में उसकी शुरू से ही गहरी दिलचस्पी थी . उसने रुचिकर लोगों को चुना . संजू की टीम में छोटे बच्चे भी हैं जो बहुत अच्छा बजाते हैं . संजू ने बताया कि वह धनकुल, तुरही, मांदर, मोहरी, सिंघ बाजा, चिकारा, नगाड़ा, टिमकी और डमरु, अलगोजा, बाना, डाक लोहाटी, कमरिया, रसिया ढोल और तंबूरा के साथ-साथ कुछ अन्य वाद्य यंत्रों का प्रयोग करता है .
संजू ने बताया आदिवासी इलाकों में पूजा के मौके पर धनकुल बजाने की परंपरा है . धनकुल धनुष के ऊपर मटके से बनता है . तुरही फूंक कर बजाई जाती है . इसका मुंह छोटा और सकरा होता है . मांदर वाद्यों का राजा कहलाता है . यह अब लकड़ी के खोल से बनाया जाता है . इसका मुख्य प्रयोग कर्मा में होता है . मोरी बांसुरी के समान होती है . सिंघ बाजा लोहे के कढ़ाईनुमा आकार में चमड़ा चढ़ाकर बनाया जाता है . चिकारा बहुत प्राचीन वाद्य है जो हरमोनियम की तरह का होता है . दंतेवाड़ा क्षेत्र में तुरतुरिया बजाई जाती है जो अलग-अलग आकृति की होती है . अलगोजा, बांसुरी के समान होता है इसे फूंक कर बजाया जाता है .

सम्पादक

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *