बंद पड़ी खदान को ईको-पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करेगा एसईसीएल…
छत्तीसगढ़ में दूसरा ईको-टूरिज्म साइट, कोरबा जिले में मानिकपुर पोखरी का होगा विकास…
कोयला कंपनी एसईसीएल ने कोरबा जिले में अवस्थित मानिकपुर पोखरी को ईको-पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया है . यह छत्तीसगढ़ राज्य में इस प्रकार का दूसरा ईको-टूरिज्म साइट होगा . इससे पहले एसईसीएल ने सूरजपुर जिले में स्थित केनापरा में भी बंद पड़ी खदान को ईको-पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया है जहां दूर-दूर से सैलानी घूमने, बोटिंग करने एवं अन्य गतिविधियों का लुत्फ लेने आते हैं . प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ट्विट करके इस पर्यटन स्थल की सराहना की है .
नई परियोजना के तहत एसईसीएल और नगर निगम, कोरबा मिलकर जिले में स्थित मानिकपुर पोखरी को ईको-पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए 11 करोड़ से अधिक की राशि खर्च करेंगे. इस परियोजना के अंतर्गत बंद पड़ी मानिकपुर ओसी, जिसने एक पोखरी का रूप ले लिया है, को विभिन्न पर्यटन सुविधाओं से लैस एक रमणीक ईको-पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा . एसईसीएल कंपनी ने परियोजना के क्रियान्वयन के लिए चेक द्वारा कलेक्टर कोरबा को 5.60 करोड़ रुपए की राशि भी जारी कर दी है .
एसईसीएल के अनुसार 8 हेक्टेयर से अधिक के क्षेत्र में फैली इस पोखरी को एक ईको-पर्यटन स्थल में परिवर्तित किया जाएगा जिसमें पर्यटकों के लिए विभिन्न सुविधाओं को विकसित किया जाएगा जिसमें बोटिंग सुविधा, फ्लोटिंग रेस्टोरेन्ट/कैफ़ेटेरिया, पोखरी परिसर में गॉर्डन, सेल्फी ज़ोन, चिल्ड्रन प्ले एरिया, क्लाइम्बिंग वॉल, रिपेलिंग वॉल, ज़िपलाइन रोलर कोस्टर, म्यूज़िकल फव्वारा तथा भव्य प्रवेश द्वार आदि शामिल हैं .
मानिकपुर ओसी कोरबा जिले की सबसे पहली खदानों में से एक है . वर्ष 1966 यहाँ रूसी तकनीकी परामर्श से कोयला खनन की शुरुआत हुई थी . करीब 24 वर्ष बाद कोयला खनन के लिए खुदाई के दौरान यहाँ भू-जल स्रोत मिलने से यहाँ इतना जल-भंडारण हो गया जिसे मोटर पंप आदि की सहायता से भी बाहर नहीं निकाला जा सका था परिणामस्वरूप खदान को बंद करना पड़ा . अब इसे ईको-पार्क की तरह विकसित करने का निर्णय लिया गया है . इस परियोजना से कोरबा तथा आसपास के जिले के वासियों को एक नया पर्यटन स्थल तो मिलेगा ही, साथ ही स्थानीय लोगों के लिए आजीविका के नए स्रोत भी खुलेंगे .
कोल इंडिया द्वारा पूरे देश में बंद/परित्यक्त खदानों को ईको-पर्यटन स्थलों में बदलने की योजना पर काम किया जा रहा है . उर्जा नगरी कोरबा की राष्ट्रीय कोयला उत्पादन क्षेत्र में लगभग 16% हिस्सेदारी है . यहाँ लगभग 6,428 मेगावाट क्षमता के कोयला विद्युत संयंत्र है . कोरबा जिले में देश ही नहीं बल्कि एशिया की सबसे बड़ी कोयला खदानें स्थित हैं .