गुवाहाटी विश्वविद्यालय में ‘कहानी का रचना शिल्प’ पर व्याख्यान…
एक कहानी के पीछे लेखक की बाहरी और आंतरिक ताकतें होती हैं…डॉ सतीश जायसवाल.

गुवाहाटी : ‘कहानी सिर्फ जरूरत के मुताबिक नहीं लिखी जाती है, इसमें लेखक या कहानीकार की मानसिक अवस्था भी शामिल होती हैं। अकेला लेखक ही नहीं लिखता बल्कि कहानी भी उससे लिखवा लेती है। वस्तुतः एक अच्छी कहानी के पीछे लेखक की बाहरी और आंतरिक शक्तियाँ काम करती हैं। देश के जानेमाने कथाकार-कवि-पत्रकार डॉ सतीश जायसवाल ने गुवाहाटी विश्वविद्यालय के असमिया विभाग के अनुसंधान मंच द्वारा आयोजित एक विशेष व्याख्यान को संबोधित करते हुए यह बात कही।

डॉ जायसवाल ने वहां ‘कहानी का रचना शिल्प’ पर आयोजित व्याख्यान-माला में कहा कि एक कहानी लिखने के लिए न केवल कहानी का विषय अपितु भाषा, वातावरण, कहानी का समय, कहानी की दिशा आदि भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। कहानीकार के लिए भौतिक पहलुओं पर ध्यान देना भी आवश्यक है तभी वह रचना समाज में एक संदेश दे सकती है।

डॉ जायसवाल ने हिंदी कहानियों के क्रमिक विकास पर भी चर्चा की। मौजूदा वक्त में हिन्दी कहानियों में अन्य पहलुओं और तकनीकों के साथ नए प्रयोग किए गए हैं। उन्होंने कहा कि हिंदी कहानी कुल सवा सौ बरस की हैं। पहली हिन्दी कहानी 1900 में लिखी गई और मात्र 15 वर्षों के अंतराल में उसने परिपक्वता हासिल कर ली। चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की “उसने कहा था” वर्ष 1915 में लिखी गई . उन्होंने ख्यातिनाम लेखक प्रेमचंद से लेकर उदय प्रकाश सहित अनेक समकालीन हिन्दी लेखकों की कहानियों को उद्धृत करते हुए कहानियों की लेखन शैली पर विस्तार से चर्चा की।

व्याख्यान के आरम्भ में डॉ जायसवाल ने प्रोफेसर एम कमालुद्दीन अहमद का जिक्र किया जिन्होंने, उनकी हिंदी कविता ‘अपनी नदी के बिना’ का असमिया भाषा में अनुवाद किया था। अंत में उन्होंने अपनी बहुचर्चित कहानी “दिनांक 30 नवम्बर 1977, राजमार्ग क्रमांक-6” पढ़ी और उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।

व्याख्यान का उद्घाटन विश्वविद्यालय के अध्यक्ष और विश्वविद्यालय के असमिया विभाग के प्रधान, प्रोफेसर कनक चंद्र चाहरिया ने किया। कार्यक्रम का संचालन शोधकर्ता दीपज्योति बोरा ने किया और वरिष्ठ शोधकर्ता कल्पज्योति रॉय ने मुख्य वक्ता का परिचय दिया।
(गुवाहाटी से प्रकाशित असमिया भाषा के प्रतिष्ठित समाचार-पत्र “दैनिक असम” से अनुदित समाचार)