फिजी में 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन ; भाषाई समन्वय पर बोले आचार्य अरुण दिवाकर नाथ वाजपेयी…
“भारतीय जीवन मूल्यों से उपजी भाषाओं से सहज समन्वय स्थापित होता है”

फिजी में 12वां विश्व हिंदी सम्मेलन ; भाषाई समन्वय पर बोले आचार्य अरुण दिवाकर नाथ वाजपेयी…“भारतीय जीवन मूल्यों से उपजी भाषाओं से सहज समन्वय स्थापित होता है”

फिजी देश में आयोजित 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन में भारत के राष्ट्रीय प्रतिनिधि मंडल में शामिल आचार्य अरुण दिवाकर नाथ वाजपेयी ने कहा है कि विश्व में दो प्रकार की भाषाएं प्रचलन में हैं, पहली भारतीय जीवन मूल्यों से उपजी भाषाएं और दूसरी गैर-भारतीय जीवन मूल्यों से उपजी भाषाएं .
उन्होंने कहा कि भारतीय जीवन मूल्यों से उपजी भाषाओं से सहज समन्वय स्थापित होता है लेकिन समस्या तब आती है जब गैर-भारतीय जीवन मूल्यों से उत्पन्न भाषाएं यथा अंग्रेजी, उर्दू आदि के शब्दों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया जाता हैं . भारतवर्ष की लगभग सभी भाषाएं संस्कृत भाषा से उत्पन्न हुई हैं, उनमें धातु है, वचन है, काल है, विभक्ति है, लिंग है, उनका गुण-धर्म है . यही वजह है कि व्याकरण की दृष्टि से यह पूर्णतः वैज्ञानिक और परिपक्व है . यह परिपक्वता दूसरी भाषाओं में दिखाई नहीं पड़ती . पाणिनी की व्याकरण और पतंजलि का स्वर-विज्ञान, दोनों ने मिलकर भारतीय मूल की भाषाओं को शुद्धता प्रदान की है . उन्होंने स्पष्ट किया कि ये सभी भाषाएँ परस्पर प्रेम में रहती हैं इसलिए उनमें अनुवाद की समस्या नहीं होती, सहज ही समन्वय स्थापित हो जाता है . देशज भाषा, जिन्हें बोलियां कहते हैं, उनका भी मूल स्रोत संस्कृत है, भारतीय जीवन मूल्य हैं, इसलिए उनमें भी परस्पर अनुवाद करने में कोई समस्या नहीं होती . समस्या तब आती है जब हम अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों के पर्यायवाची शब्दों को ढूंढते हैं . जैसे, हिंदी में धर्म शब्द का अनुवाद अंग्रेजी में नहीं है . रिलीजन या मजहब सही अनुवाद नहीं है . वैसे ही दर्शन, फिलॉसफी नहीं है . सेक्युलरिज्म, धर्मनिरपेक्षता नहीं है . मोहताज और रोजगार जैसे शब्दों का हिंदी में कोई सही शब्द नहीं मिलता .
अटल बिहारी बाजपेयी विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य बाजपेयी ने विश्व हिंदी सम्मेलन के मंच से अपने वक्तव्य में आगे कहा कि भाषा पर गंभीर अनुसंधान की आवश्यकता है जिससे समन्वय स्थापित हो और विश्व में शांति आ सके . उन्होंने कहा कि कुछ ऐसे बीज मंत्र होते हैं जिनका अनुवाद संभव नहीं है और उसकी आवश्यकता ही नहीं होती . उनके उच्चारण मात्र से कल्याण होता है .
आचार्य बाजपेयी ने अपने संबोधन में कृत्रिम मेधा के उपयोग में सतर्कता बरतने की बात भी की . उन्होंने साफ़ कहा कि प्राकृतिक मेधा का कोई विकल्प नहीं हो सकता . आचार्य बाजपेयी, फिजी में संपन्न हो रहे विश्व हिंदी सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए गए हुए हैं . वे 18 फरवरी को बिलासपुर लौटेंगे .

सम्पादक

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